पुलस्त्य द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन

महाभारत वनपर्व के 'तीर्थयात्रापर्व' के अंतर्गत अध्याय 84 में पुलस्त्य द्वारा विभिन्न तीर्थों के बारे में बताया गया है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है[1]-

पुलस्त्यजी कहते हैं- महाराज! तदनन्तर परम उत्तम धर्मतीर्थ की यात्रा करे, जहाँ महाभाग धर्म ने उत्तम तपस्या की थी। राजन! उन्होंने ही अपने नाम से विख्यात पुण्य तीर्थ की स्थापना की है। वहाँ स्नान करने से मनुष्य धर्मशील एवं एकाग्रचित्त होता है और अपने कुल की सावतीं पीढ़ी तक के लोगों को पवित्र कर देता है; इस में संशय नहीं है। राजेन्द्र! तदनन्तर उत्तम ज्ञान पावन तीर्थ में जाय। वहाँ जाने से मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता और मुनिलोक में जाता है। राजन! तत्पश्चात् मानव सौगंधिक वन में जाय। वहाँ ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन ऋषि, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, किन्नर और बड़े-बड़े नाग निवास करते हैं। उस वन में प्रवेश करते ही मानव सब पापों से मुक्त हो जाता है। उससे आगे सरिताओं में श्रेष्ठ और नदियों में उत्तम नदी परम पुण्यमयी सरस्वती देवी का उदग्‍म स्थान है, जहाँ वे प्लक्ष (पकड़ी) नामक वृक्ष की जड़ से टपक रही हैं।

राजन! वहाँ बांबी से निकल हुए जंल में स्नान करना चाहिये। वहाँ देवताओं तथा पितरों की पूजा करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। वहीं ईशनाध्युषित नामक परम दुर्लभ तीर्थ है। जहाँ बांबी का जल है, वहाँ से इसकी दूरी छः शम्यानिपात है। यह निश्चित माप बताया गया है। नरश्रेष्ठ! उस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को सहस्र कपिलदान और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है; इसे प्राचीन ऋषियों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया है। भारत! पुरुषरत्न! सुगन्धा, शतकुम्भा तथा पंचयज्ञा तीर्थ में जाकर मानव स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। भरतकुलतिलक! वहीं त्रिशूलखात नामक तीर्थ है; वहाँ जाकर स्नान करे और देवताओं तथा पितरों की पूजा में लग जाय। ऐसा करने वाला मनुष्य देहत्याग के अनन्तर गणपति-पद प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है। राजेन्द्र! वहाँ से परमदुर्लभ देवी स्थान की यात्रा करे, वह देवी तीनों लोकों में शाकम्भरी नाम से विख्यात है।

नरेश्वर! कहते हैं उत्तम व्रत का पालन करने वाली उस देवी ने एक हजार दिव्य वर्षो तक एक एक महीने पर केवल शाक का आहार किया था। देवी की भक्ति से प्रभावित होकर बहुत-से तपोधन महर्षि वहाँ आये। भारत! उस देवी ने उस महर्षियों का आतिथ्य-सत्कार भी शोक में ही किया था। भारत! तब से उस देवी का ‘शाकम्भरी’ ही नाम से प्रसिद्ध हो गया। शकम्भरी के समीप जाकर मनुष्य ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्रचित्त और पवित्र हो वहाँ तीन रात तक शाक खाकर रहे तो बारह वर्षो तक शाकाहारी मनुष्य को पुण्य प्राप्त होता है, वह उसे देवी की इच्छा से (तीन ही दिनों में) मिल जाता है। तदनन्तर त्रिभुवनविख्यात सुवर्णतीर्थ की यात्रा करे। वहाँ पूर्वकाल में भगवान विष्णु ने रुद्रदेव की प्रसन्नता के लिये उसकी अराधना की और उनसे अनेक देव दुर्लभ उत्तम वर प्राप्त किया।

भारत! उस समय संतुष्टचित्त त्रिपुरारि शिव ने श्रीविष्णु से कहा- श्रीकृष्ण! तुम मुझे लोक में अत्यन्त प्रिय होओगे। संसार में सर्वत्र तुम्हारी ही प्रधानता होगी, इसमें संशय नहीं है।’ राजेन्द्र! उस तीर्थ मे जाकर भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और गणपति पद प्राप्त कर लेता है। वहाँ से मनुष्य धूमावती तीर्थ को जाय और तीन रात उपवास करे। इससे वह निःसंदेह मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है।

नरेश्वर! देवी के दक्षिणार्थ भाग में रथावर्त नामक तीर्थ है। धर्मज्ञ! जो श्रद्धालु एवं जितेन्द्रिय पुरुष उस तीर्थ की यात्रा करता है, वह महादेव जी के प्रसाद से नरम गति प्राप्त कर लेता है। भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर महाप्राज्ञ पुरुष उस तीर्थ की परिक्रमा करके धारा की यात्रा करे, जो सब पापों से छुड़ाने वाली है। नरव्याघ्र! नराधिप! वहाँ स्नान करके मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता है। धर्मज्ञ! वहाँ से महापर्वत हिलामय को नमस्कार कर के गंगा द्वारा (हरिद्वार) की यात्रा कर, जो स्वर्ग द्वार के समान है; इसमें संशय नहीं है। वहाँ एकाग्रचित्त हो कोटितीर्थ में स्नान करे। ऐसा करने वाला मनुष्य पुण्डरीक यज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार करता है। वहाँ एक रात निवास करने से सहस्र गो दान का फल मिलता है। सप्तगंग, त्रिकगंग और शक्रावर्ततीर्थ में विधिपूर्वक देवताओं तथा पितरों का तर्पण करने वाला मनुष्य पुण्यलोक में प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर कनखल में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। नरेश्वर! उसके बाद तीर्थसेवी मनुष्य कपितवद्ध तीर्थ में जाय। वहाँ रात भर उपवास करने से उसे सहस्र गो दान का फल मिलता है। राजेन्द्र! कुरुश्रेष्ठ! वही नागराज महात्मा कपित का तीर्थ है, जो सम्पूर्ण लोकों में विख्यात है। महाराज! वहाँ नागतीर्थ में स्नान करना चाहिये। इससे मनुष्य को सहस्र कपिला दान का फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् शान्तनु के उत्तम तीर्थ ललितक में जाय। राजन! वहाँ स्नान करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता।

जो मनुष्य गंगा-यमुना के बीच संगम (प्रयाग) में स्नान करता है, उसे दस अश्मेध यज्ञों का फल मिलता है और वह अपने कुल का उद्धार कर देता है। राजेन्द्र! तदनन्तर लोकविख्यात सुगन्धातीर्थ की यात्रा करे। इससे सब पापों से विशुद्धचित्त हुआ मानव ब्रह्मलोक में पूजित होता है। नरेश्वर! तदनन्तर तीर्थसेवी पुरुष रुद्रावर्ततीर्थ में जाय। राजन! वहाँ स्नान करके मनुष्य स्वर्गलोक में जाता है। नरश्रेष्ठ! गंगा और सरस्वती के संगम में स्नान करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। भगवान भद्रकर्णेश्वर के समीप जाकर विधिपूर्वक उनकी पूजा करने वाला पुरुष कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और स्वर्गलोक में पूजित होता है। नरेन्द्र! तत्पश्चात् तीर्थसेवी मानव कुब्जाम्रक तीर्थ में जाय। वहाँ उसे सहस्र गो दान का फल मिलता है और अंत में वह स्वर्गलोक को जाता है।

नरपते! तत्पश्चात् तीर्थसेवी अरुन्धतीवट के समीप जाय और समुद्रकतीर्थ में स्नान करके ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्रचित्त हो तीन रात उपवास करे। इससे मनुष्य अश्वमेध यज्ञ को सहस्र गो दान का फल पाता तथा उसके कुल का उद्धार कर देता है। तदनन्तर ब्रह्मचर्य पालन र्पूवक चित्त को एकाग्र करके ब्रह्मवर्ततीर्थ में जाय। इससे वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और सोमलोक को जाता है। यमुनाप्रभव नामक तीर्थ में जाकर यमुना जल में स्नान करके अश्वमेध यज्ञ का फल पाकर मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। दर्वी संक्रमण नामक विभुवनपूजित तीर्थ में जाने से तीर्थयात्री अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। सिंधु के उद्गमस्थान में, जो सिद्ध-गन्धर्वों द्वारा सेवित है, जाकर पांच रात उपवास करने से प्रचुर सुवर्णराशि की प्राप्ति होती है। तदनन्तर मनुष्य परम दुर्गम वेदीतीर्थ में जाकर अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है।[2]

भरतनन्दन! ऋषिकुल्या एवं वासिष्ठतीर्थ में जाकर स्नान आदि करके वासिष्ठी को लांघ कर जाने वाले क्षत्रिय आदि सभी वर्णों के लोग द्विजाति हो जाते हैं। ऋषिकुल्या में जाकर स्नान करके पापरहित मानव देवताओं और पितरों की पूजा करके ऋषि लोक में जाता है। नरेश्वर! यदि मनुष्य भृगुतुंग में जाकर शाकाहारी हो वहाँ मास तक निवास करे तो उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। वीरप्रभोक्षतीर्थ में जाकर मनुष्य उस पापों से छुटकारा पा जाता है। भारत! कृत्तिका और मघा के तीर्थ में जाकर मानव अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञों का फल पाता है। वहीं प्रातः-संध्या के समय परम उत्तम विद्यातीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य जहां-कहीं भी विद्या प्राप्त कर लेता है। जो सब पापों से छुड़ाने वाले महाश्रमतीर्थ में एक समय उपवास करके एक रात वहीं निवास करता है, उसे शुभ लोकों की प्राप्ति होती है। जो छठे समय उपवास पूर्वक एक मास तक महालयतीर्थ में निवास करता है, वह सब पापों से शुद्धचित्त हो प्रचुर सुवर्णराशि प्राप्त करता है। साथ ही दस पहले की और दस बाद की पीढि़यों का भी उद्धार कर देता है।

तत्पश्चात् ब्रह्माजी के द्वारा सेवित वेतसिकातीर्थ में जाकर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और शुक्राचार्य के लोक में जाता है। इसके बाद इन्द्रिय संयम और ब्रह्मचर्य के पालन पूवर्क ब्राह्मणीतीर्थ में जाने से मनुष्य कमल के समान कांति वाले विमान द्वारा ब्रह्मलोक में जाता है। तदनन्तर सिद्धसेवित पुण्यमय नैमिष (नैमिषारण्य) तीर्थ में जाय। वहाँ देवताओं के साथ ब्रह्माजी नित्य निवास करते हैं। नैमिषी खोज करने वाले पुरुष का आधा पाप उसी समय नष्ट हो जाता है और उस में प्रवेश करते ही वह सारे पापों से छुटकारा पा जाता है। धीर पुरुष तीर्थसेवन में तत्पर हो एक मास तक नैमिष में निवास करे। पृथ्वी में जितने तीर्थ है, यह गोमेध यज्ञ का फल पाता है। भरतश्रेष्ठ! अपने कुल की सात पीढि़यों का भी वह उद्धार कर देता है। जो नैमिष में उपवास पूर्वक प्राण त्याग करता है, वह सब लोकों में आनंद का अनुभव करता है; ऐसा मनीषी पुरुषों का कथन है।

नृपश्रेष्ठ! नैमिषीतीर्थ नित्य, पवित्र और पुण्यजनक है। गंगोदतीर्थ में जाकर तीन रात उपवास करने वाले मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता और सदा के लिये ब्रह्मीभूत हो जाता है। सरस्वती तीर्थ में जाकर देवता और पितरों का तर्पण करे। इससे तीर्थयात्री सारस्वतलोक में जाकर आनंद का भागी होता है; इसमें संशय नहीं हैं। तदनन्तर बाहुदा-तीर्थ में जाय और ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्रचित्त हो वहाँ एक रात उपवास करे; इससे वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है कुरुनन्दन! उसे देवसत्र यज्ञ का भी फल प्राप्त होता है। वहाँ से क्षीरवती नामक पुण्यतीर्थ में जाय, जो अत्यन्त पुण्यात्मा पुरुषों से भरी हुई है। वहाँ स्नान करके देवता और पितरों के पूजन में लगा हुआ मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता है। वहीं विमलाशोक नामक उत्तम तीर्थ है, वहाँ जाकर ब्रह्मचर्य पालन पर्वूक एकाग्रचित्त हो एक रात निवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। वहाँ से सरयू के उत्तम तीर्थ गोप्रतार में जाय। महाराज! वहाँ अपने सेवकों, सैनिकों और वाहनों के साथ गोते लगा कर उस तीर्थ के प्रभाव से वे वीर श्रीरामचन्द्र जी अपने नित्यधाम को पधारे थे।[3]

भरतनन्दन! नरेश्वर! उस सरयू के गोप्रतारतीर्थ में स्नान करके मनुष्य श्रीरामचन्द्र जी की कृपा का उद्योग से सब पापेां से शुद्ध हो कर स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। कुरुनन्दन! गोमती के रामतीर्थ में स्नान करके मनुष्य अश्वमेधयज्ञ का फल पाता और अपने कुल को पवित्र कर देता है। भरतकुलभूषण! वहीं शतसाहस्त्रतीर्थ है। उसमें स्नान करके नियम पालन पूर्वक नियमित भोजन करते हुए मनुष्य सहस्र गो दान का फल प्राप्त करता है। राजेन्द्र! वहा से परम उत्तम भर्तृस्थान को जाय। वहाँ जाने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। राजन! मनुष्य कोटितीर्थ में स्नान करके कार्तिकेयजी का पूजन करने से सहस्र गो दान का फल पाता है और तेजस्वी होता है।

तदनन्तर वाराणसी (काशी) तीर्थ में जाकर भगवान शंकर की पूजा करे और कपिलाह्रद में गोता लगाये; इससे मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। कुरुश्रेष्ठ! अविमुक्त तीर्थ में जाकर तीर्थसेवी मनुष्य देवदेव महादेवजी का दर्शन मात्र करके ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है। वहीं प्राणोत्सर्ग करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। राजेन्द्र! गोमती और गंगा के लोकविख्यात संगम के समीप मार्कण्डेयजी का दुर्लभ तीर्थ है। उसमें जाकर मनुष्य अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। वहाँ तीनों लोकों में विख्यात अक्षयवट हैं। उनके समीप पितरों के लिये दिया हुआ सब कुछ अक्षय बताया जाता है। महानदी में स्नान करके जो देवताओं और पितरों का तपर्ण करता है, वह अक्षय लोकों को प्राप्त होता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। तदनन्तर धर्मारण्य से सुशोभित ब्रह्मसरोवर की यात्रा करके वहाँ एक रात प्रातःकाल तक निवास करने से मनुष्य ब्रह्मलोक को प्राप्त कर लेता है।

ब्रह्मजी उस सरोवर मं एक श्रेष्ठ यूप की स्थापना की थी। इसकी परिक्रमा करने से मानव वाजपेय यज्ञ का फल पा लेता है। राजेन्द्र! वहाँ से लोकविख्यात धेनुतीर्थ के जाय। महाराज! वहाँ एक रात रह कर तिलकी गौ का दान करे। इससे तीर्थयात्री पुरुष सब पापों से शुद्धचित्त हो निश्चय ही सोमलोक में जाता है। राजन! वहाँ एक पर्वत पर चरने वाली बछड़े सहित कपिला गौ का विशाल चरणचिह्र आज भी अंकित है। भरतनन्दन! बछड़े सहित उन गौ के चरणचिह्र आज भी वहाँ देखे जाते हैं। भारत! नृपश्रेष्ठ! राजेन्द्र! उन चरणचिह्रों का स्पर्श करके मनुष्य का जो कुछ भी अशुभ कर्म शेष रहता है, वह सब नष्ट हो जाता है। तदनन्तर परम बुद्धिमान् महादेवजी के गृध्रवट नामक स्थान की यात्रा करे और वहाँ भगवान शंकर के समीप जाकर भस्म से स्नान करे[4]। वहाँ यात्रा करने से ब्राह्मण को बारह वर्षो तक व्रत के पालन करने का फल प्राप्त होता है और अन्य वर्ण के लोगों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भरतकुलभूषण! तदनन्तर संगीत की ध्वनि से गूंजते हुए उदयगिरीपर जाय। वहाँ सावित्री का चरणचिह्र आज भी दिखायी देता है। उत्तम व्रत का पालन करने वाला ब्राह्मण वहाँ संध्योपासना करे। इससे उसके द्वारा बारह वर्षो तक की संध्योपासना सम्पन्न हो जाती है। भरतश्रेष्ठ! वहीं विख्यात योनिद्वारतीर्थ है, जहाँ जाकर मनुष्य योनिसंकट मुक्त हो जाता है- उसका पुर्नजन्म नहीं होता। राजन! जो मानव कृष्ण, और शुंक दोनों पक्षों में गया तीर्थ में निवास करता है, वह अपने कुल की सातवीं पीढ़ी तक को पवित्र कर देता है, इसमें संशय नहीं है।[5]

बहुत-से पुत्रों की इच्छा करे। सम्भव है, उनमें से एक भी गया में जाय या अश्वमेध यज्ञ करे अथवा नील वृष का उत्सर्ग ही करे। राजन! नरेश्वर! तदनन्तर तीर्थ सेवी मानव फल्गुतीर्थ में जाय। वहाँ जाने से उसे अश्वमेध का फल मिलता है और बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त होती है। महाराज! तदनन्तर एकाग्रचित्त हो मनुष्य धर्मप्रस्थ की यात्रा करे। युधिष्ठिर! वहाँ धर्मराज का नित्य निवास है। वहाँ कुएं का जल लेकर उससे स्नान करके पवित्र देवताओं और पितरों का तर्पण करने से मनुष्य के सारे पाप छूट जाते हैं और वह स्वर्गलोक में जाता है। वहीं भावितात्मा महर्षि मतंग का आश्रय है। श्रम और शोक का विनाश करने वाले उस सुन्दर आश्रय में प्रवेश करने से मनुष्य गवायनयज्ञ का फल पाता है। वहाँ धर्म के निकट जा उनके श्रीविग्रह का दर्शन और स्पर्श करने से अध्वमेध का फल प्राप्त होता है।

राजेन्द्र! तदनन्तर परम उत्तम ब्रह्मस्थान को जाय। महाराज! पुरुषोत्तम! वहाँ ब्रह्मा जी के समीप जाकर मनुष्य राजसूय और अश्वमेध यज्ञों का फल पाता है। नरेश्वर! तदनन्तर तीर्थसेवी मनुष्य राजगृह को जाय। वहाँ स्नान करके वह कक्षीवान के समान प्रसन्न होता है। उस तीर्थ में पवित्र हो कर पुरुष यक्षिणीदेवी का नैवेद्य भक्षण करे। यक्षिणी के प्रसाद से वह ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है। तदनन्तर मणिनाग तीर्थ में जाकर तीर्थयात्री सहस्र गोदान का फल प्राप्त करे। भरतनन्दन! जो मणिनाग का तीर्थप्रसाद[6]का भक्षण करता है, उसे सांप काट ले तो भी उस पर विष का असर नहीं होता। वहाँ एक रात रहने से सहस्र गो दान का फल मिलता है। तत्पश्चात् ब्रह्मार्षि गौतम के प्रिय वन की यात्रा करे। वहाँ अहल्याकुण्ड में स्नान करने से मनुष्य परमगति को प्राप्त होता है। राजन! गौतम के आश्रय में जाकर मनुष्य अपने लिये लक्ष्मी प्राप्त कर लेता है।

धर्मज्ञ! वहाँ एक त्रिभुवनविख्यात कूप है, जिसमें स्नान करने से अध्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। राजर्षि जन का एक कूप है, जिसका देवता भी सम्मान करते हैं। वहाँ स्नान करने से मनुष्य विष्णुलोक मं जाता है। तत्पश्चात् सब पापों से छुड़ाने वाले विनशन तीर्थ को जाय, जिससे मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता और सोमलोक को जाता है। गण्डकी नदी सब तीर्थों के जल से उत्पन्न हुई है। वहाँ जाकर तीर्थ यात्री अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और सूर्यलोक में जाता है। तत्पश्चात् त्रिलोकी में विख्यात विशल्या नदी के तट पर जाकर स्नान करे। इससे वह अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है।

धर्मज्ञ महाराज! तदनन्तर वंगदेशीय तपोवन में प्रवेश करके तीर्थयात्री इस शरीर के अन्त में गुह्यकलोक में जाकर निःसन्देह आनंद का भागी होता है। तत्पश्चात् सिद्धसेवित कम्पना नदी में पहुँचकर मनुष्य पुण्डरीकयज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। राजन! तत्पश्चात् माहेश्वरी धारा की यात्रा करने से तीर्थयात्रा को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और वह कुल का उद्धार कर देता है। नरेश्वर! फिर देवपुष्करिणी में जाकर मानव कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्रचित्त हो से मपद तीर्थ में जाय। वहाँ माहेश्वर पद में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।[7]

भरतकुलतिलक! वहाँ तीर्थों की विख्यात श्रेणी को एक दुरात्मा असुर कुर्गरूप धारण करके हरकर लिये जाता था। राजन! यह देखकर सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु ने उस तीर्थश्रेणी का उद्धार किया। युधिष्ठिर! वहाँ उस तीर्थ कोटि में स्नान करना चािहये। ऐसा करने वाले यात्री को पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है और वह विष्णुलोक को जाता है। राजेन्द्र! तदनन्तर नारायण स्थान को जाय। भरतनन्दन! वहाँ भगवान विष्णु सदा निवास करते हैं। ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन ऋषि, आदित्य, वसु तथा रुद्र भी वहाँ रह कर जनार्दन की उपासना करते हैं। उस तीर्थ में अद्भुतकर्मा भगवान विष्णु शालग्राम के नाम से प्रसिद्ध हैं। तीनों लोकों के स्वामी उन वरदायक अविनाशी भगवान विष्णु के समीप जाकर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और विष्णुलोक में जाता है। धर्मज्ञ! वहाँ एक कूप है, जो सब पापों को दूर करने वाला है। उसमें सदा चारों समुद्र निवास करते हैं।

राजेन्द्र! उसमें निवास करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। सब को वर देने वाले अविनाशी महादेव रुद्र के समीप जाकर मनुष्यों मेघों के आवरण से मुक्त हुए चन्द्रमा की भाँति सुशाभित होता है। नरेश्वर! वहीं जातिस्मर तीर्थ है; जिसमें स्नान करके मनुष्य पवित्र एवं शुद्धचित्त हो जाता है। अर्थात उसके शरीर और मन की शुद्धि हो जाती है। उस तीर्थ में स्नान करने से पूर्वजन्म की बातों का स्मरण करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। माहेश्वरपुर में जाकर भगवान शंकर की पूजा और उपवास करने से मनुष्य सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है, इस में तनिक भी संदेह नहीं है।

तत्पश्चात् सब पापों को दूर करने वाले वामनतीर्थ की यात्रा करके भगवान श्रीहरि के निकट जाय। उनका दर्शन करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। इसके बाद सब पापों से छुड़ाने वाले कुशिका श्रम की यात्रा करे। वहीं बड़े-बडे़ पापों का नाश करने वाली कौशिकी (कोशी) नदी है। उसके तट पर जाकर स्नान करे। ऐसा करने वाला मानव राजसूर्ययज्ञ का फल पाता है। राजेन्द्र! तदनन्तर उत्तम चम्पकारण्य (चम्पारन) की यात्रा करे। वहाँ एक बात निवास करने से तीर्थयात्री को सहस्र गो दान का फल मिलता है। तत्पश्चात् परम दुलर्भ ज्योष्ठिल तीर्थ में जाकर एक राज निवास करने में मानव सहस्र गो दान का फल पाता है। पुरुषरत्न! वहाँ पार्वतीदेवी के साथ महातेजस्वी भगवान विश्वेश्वर का दर्शन करने से तीर्थयात्री को मित्र और वरुण देवता के लोकों की प्राप्ति होती है वहाँ तीन रात उपवास करने से अग्निष्टोमयज्ञ का फल मिलता है। पुरुषश्रेष्ठ! इसके बाद नियम पूर्वक नियमित भोजन करते हुए तीर्थयात्री को कन्यासंवेद्य नामक तीर्थ में जाना चाहिये। इससे वह प्रजापति मनु के लोक प्राप्त कर लेता है।

भरतनन्दन! जो लोग कन्यासंवेद्य तीर्थ में थोड़ा-सा भी दान देते हैं, उनके उस दान को उत्तम व्रत का पालन करने वाले महर्षि अक्षय बताते हैं। तदनन्तर त्रिलोकविख्यात निंश्चीरा नदी की यात्रा करे। इससे अश्वमेधयज्ञ का फल प्राप्त होता है और तीर्थयात्री पुरुष भगवान विष्णु के लोक में जाता है। नरश्रेष्ठ! जो मानव निश्चीरा संगम में दान देते हैं, वे रोग शोक से रहित इन्द्रलोक में जाते हैं। वहीं तीनों लोकों में विख्यात वसिष्ठ-आश्रम है। वहाँ स्नान करने वाला मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर ब्रह्मर्षियों से सेवित देवकूट तीर्थ में जाकर स्नान करे।[8]

ऐसा करने से एक मास में ही अश्वमेध यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। जो सब तीर्थों में उत्तम महाह्रद में स्नान करता है, वह कभी दुर्गति को नहीं प्राप्त होता और प्रचुर सुवर्णराशि प्राप्त कर लेता है। तदनन्तर वीराश्रम निवासी कुमार कार्तिकेय के निकट जाकर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है। वहाँ वर देने वाले महान देवता अविनाशी भगवान विष्णु के निकट जाकर उसका दर्शन और पूजन करे। गिरिराज हिमालय के निकट पितामह सरोवर में जाकर स्नान करने वाले पुरुष को अग्निष्टोमयज्ञ का फल मिलता है।

पितामह सरोवर से सम्पूर्ण जगत को पवित्र करेन वाली एक धारा प्रवाहित होती है, जो तीनों में कुमारधारा के नाम से विख्यात है। उसमें स्नान करके मनुष्य अपने आपकों कृतार्थ मानने लगता है। वहाँ रह कर छठे समय उपवास करने से मनुष्य ब्रह्महत्या से छुटकारा पा जाता है। धर्मज्ञ! तदनन्तर तीर्थ सेवन में तत्पर मानव महादेवी गौरी के शिखर पर जाय, तो तीनों लोकों में विख्यात है। उस तीर्थ में स्नान करके देवताओं और पितरों की पूजा करने वाला पुरुष अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और इन्द्रलोक में पूजित होता है। तदनन्तर ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्रचित्त हो ताम्रारूण तीर्थ की यात्रा करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और ब्रह्मलोक में जाता है। नन्दिनीतीर्थ में देवताओं द्वारा सेवित एक कूप है। नरेश्वर! वहाँ जाकर स्नान करने से मानव नरमेधयज्ञ का पुण्यफल प्राप्त करता है।

राजन! कौशिकी-अरुणा-संगम और कालिका संगम में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। तदनन्तर उर्वशीतीर्थ, सोमाश्रम और कुम्भकर्णाश्रम की यात्रा करके मनुष्य इस भूतल पर पूजित होता है।कोकामुखतीर्थ स्नान करके ब्रह्मचर्य एवं संयम-नियम का पालन करने वाला पुरुष पूर्वजन्म की बातों को स्मरण करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। यह बात प्राचीन पुरुषों ने प्रत्यक्ष देखी है। प्राड्नदी तीर्थ में जाने से द्विज कृतार्थ हो जाता है। वह तब पापों से शुद्धचित्त होकर इन्द्रलोक में जाता है। तीर्थसेवी मनुष्य पवित्र ऋषभद्वीप और कौंचनिषूदनतीर्थ में जाकर सरस्वती में स्नान करने से विमान पर विराजमान होता है। महाराज! मुनियों से सेवित औद्दालकतीर्थ में स्नान करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। परम पवित्र ब्रह्मर्षिसेवित धर्मतीर्थ में जाकर स्नान करने वाला मनुष्य वाजपेययज्ञ का फल पाता और विमान पर बैठकर पूजित होता है।[9]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-22
  2. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 23-47
  3. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 48-71
  4. अपने शरीर में भस्म लगाये
  5. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 72-96
  6. नैवेद्य चरणामृत आदि
  7. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 97-119
  8. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 120-141
  9. महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 142-162

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भीम द्वारा किर्मीर वध
अर्जुनाभिगमन पर्व
अर्जुन तथा द्रौपदी द्वारा कृष्ण स्तुति | द्रौपदी का कृष्ण से अपने अपमान का वर्णन | कृष्ण द्वारा जूए दोष का वर्णन | कृष्ण द्वारा शाल्व वध का वर्णन | द्वारका में युद्ध सम्बंधी तैयारियों का वर्णन | यादव सेना द्वारा शाल्व सेना का प्रतिरोध | प्रद्युम्न और शाल्व का युद्ध | प्रद्युम्न का अनुताप | प्रद्युम्न द्वारा शाल्व की पराजय | कृष्ण और शाल्व का युद्ध | कृष्ण और शाल्व की माया | कृष्ण द्वारा शाल्ववधोपाख्यान की समाप्ति | पांडवों की द्वैतवन में प्रवेश की उद्यता | पांडवों का द्वैतवन में प्रवेश | मार्कण्डेय द्वारा पांडवों को धर्म आदेश | बक द्वारा युधिष्ठिर से ब्राह्मण महत्त्व का वर्णन | द्रौपदी का युधिष्ठिर से संतापपूर्ण वचन | द्रौपदी द्वारा प्रह्लाद-बलि संवाद वर्णन | युधिष्ठिर द्वारा क्रोध निन्दा | द्रौपदी का युधिष्ठिर और ईश्वर न्याय पर आक्षेप | युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी आक्षेप का समाधान | द्रौपदी द्वारा पुरुषार्थ को प्रधानता | भीम द्वारा पुरुषार्थ की प्रशंसा | भीम का युधिष्ठिर से क्षत्रिय धर्म अपनाने का अनुरोध | युधिष्ठिर द्वारा धर्म पर ही रहने की घोषणा | भीम द्वारा युधिष्ठिर का उत्साह वर्धन | व्यास द्वारा युधिष्ठिर को प्रतिस्मृतिविद्या का दान | अर्जुन का इन्द्रकील पर्वत पर प्रस्थान
कैरात पर्व
अर्जुन की उग्र तपस्या | अर्जुन का शिव से युद्ध | अर्जुन द्वारा शिव स्तुति | अर्जुन को शिव का वरदान | अर्जुन के पास दिक्पालों का आगमन | इन्द्र द्वारा अर्जुन को स्वर्ग आगमन का आदेश
इन्द्रलोकाभिगमन पर्व
अर्जुन का स्वर्गलोक प्रस्थान | अर्जुन का इन्द्रसभा में स्वागत | अर्जुन को अस्त्र और संगीत की शिक्षा | चित्रसेन और उर्वशी का वार्तालाप | उर्वशी का अर्जुन को शाप | इन्द्र-अर्जुन से लोमश मुनि की भेंट | धृतराष्ट्र की पुत्र चिन्ता तथा संताप | वन में पांडवों का आहार | कृष्ण प्रतिज्ञा का संजय द्वारा वर्णन
नलोपाख्यान पर्व
बृहदश्व द्वारा नलोपाख्यान | बृहदश्व द्वारा नल-दमयन्ती के गुणों का वर्णन | दमयन्ती स्वयंवर के लिए राजाओं का प्रस्थान | नल द्वारा दमयन्ती से देवताओं का संदेश | नल-दमयन्ती वार्तालाप | नल-दमयन्ती विवाह | नल के विरुद्ध कलियुग का कोप | नल और पुष्कर की द्यूतक्रीड़ा | दमयन्ती का कुमार-कुमारी को कुण्डिनपुर भेजना | नल-दमयन्ती का वन प्रस्थान | नल द्वारा दमयन्ती का त्याग | दमयन्ती का पातिव्रत्यधर्म | दमयन्ती का विलाप | दमयन्ती को तपस्वियों द्वारा आश्वासन | दमयन्ती का चेदिराज के यहाँ निवास | नल द्वारा कर्कोटक नाग की रक्षा | नल की ऋतुपर्ण के यहाँ अश्वाध्यक्ष पद पर नियुक्ति | विदर्भराज द्वारा नल-दमयन्ती की खोज | दमयन्ती का पिता के यहाँ आगमन | दमयन्ती को नल का समाचार मिलना | ऋतुपर्ण का विदर्भ देश को प्रस्थान | बाहुक की अद्भुत रथसंचालन कला | ऋतुपर्ण से नल को द्यूतविद्या के रहस्य की प्राप्ति | नल के शरीर से कलियुग का निकलना | ऋतुपर्ण का कुण्डिनपुर में प्रवेश | केशिनी-बाहुक संवाद | केशिनी द्वारा बाहुक की परीक्षा | नल-दमयन्ती मिलन | नल-ऋतुपर्ण वार्तालाप | नल द्वारा पुष्कर को जूए में हराना | नल आख्यान का महत्त्व | बृहदश्व का युधिष्ठिर को आश्वासन
तीर्थ यात्रा पर्व
अर्जुन के लिए पांडवों की चिन्ता | युधिष्ठिर के पास नारद का आगमन | पुलस्त्य का भीष्म से तीर्थयात्रा माहात्म्य वर्णन | कुरुक्षेत्र के तीर्थों की महत्ता | पुलस्त्य द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि की महिमा का वर्णन | गंगा का माहात्म्य | युधिष्ठिर धौम्य संवाद | धौम्य द्वारा पूर्व दिशा के तीर्थों का वर्णन | धौम्य द्वारा दक्षिण दिशा के तीर्थों का वर्णन | धौम्य द्वारा पश्चिम दिशा के तीर्थों का वर्णन | धौम्य द्वारा उत्तर दिशा के तीर्थों का वर्णन | अर्जुन के दिव्यास्त्र प्राप्ति का लोमश द्वारा वर्णन | इन्द्र-अर्जुन संदेश से युधिष्ठिर की प्रसन्नता | पांडवों का तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान | लोमश का अधर्म से हानि और पुण्य की महिमा का वर्णन | पांडवों द्वारा राजा गय के यज्ञों की महिमा का श्रवण | लोमश द्वारा इल्वल-वातापि का वर्णन | विदर्भराज को अगस्त्य से कन्या की प्राप्ति | अगस्त्य का लोपामुद्रा से विवाह | अगस्त्य का धनसंग्रह के लिए प्रस्थान | अगस्त्य द्वारा वातापि तथा इल्वल का वध | लोपामुद्रा को पुत्र की प्राप्ति | परशुराम को तीर्थस्नान द्वारा तेज की प्राप्ति | दधीच का अस्थिदान एवं वज्र निर्माण | वृत्रासुर का वध | कालेय दैत्यों द्वारा तपस्वियों-मुनियों आदि का संहार | देवताओं द्वारा विष्णु की स्तुति | विष्णु आदेश से देवताओं द्वारा अगस्त्य की स्तुति | अगस्त्य का विन्ध्यपर्वत को बढ़ने से रोकना | अगस्त्य का समुद्रपान तथा देवताओं द्वारा कालेय दैत्यों का वध | सगर की संतान प्राप्ति के लिए तपस्या | कपिल की क्रोधाग्नि से सगरपुत्रों का भस्म होना | भगीरथ को राज्य की प्राप्ति | भगीरथ की तपस्या | गंगा का पृथ्वी पर आगमन और सगरपुत्रों का उद्धार | नन्दा तथा कौशिकी का माहात्म्य | लोमपाद का मुनि ऋष्यशृंग को अपने राज्य में लाने का प्रयत्न | ऋष्यशृंग को वेश्या द्वारा लुभाना जाना | ऋष्यशृंग का पिता से वेश्या के स्वरूप तथा आचरण का वर्णन | ऋष्यशृंग का लोमपाद के यहाँ आगमन | लोमपाद द्वारा विभाण्डक मुनि का सत्कार | युधिष्ठिर का महेन्द्र पर्वत पर गमन | ऋचीक मुनि का गाधिकन्या के साथ विवाह | जमदग्नि की उत्पत्ति का वर्णन | परशुराम का अपनी माता का मस्तक काटना | जमदग्नि मुनि की हत्या | परशुराम का पृथ्वी को नि:क्षत्रिय करना | युधिष्ठिर द्वारा परशुराम का पूजन | युधिष्ठिर की प्रभासक्षेत्र में तपस्या | यादवों का पांडवों से मिलन | बलराम की पांडवों के प्रति सहानुभूति | सात्यकि के शौर्यपूर्ण उद्गार | युधिष्ठिर द्वारा कृष्ण के वचनों का अनुमोदन | गय के यज्ञों की प्रशंसा | पयोष्णी, नर्मदा तथा वैदूर्य पर्वत का माहात्म्य | च्यवन को सुकन्या की प्राप्ति | च्यवन को रूप तथा युवावस्था की प्राप्ति | च्यवन का इन्द्र पर कोप | च्यवन द्वारा मदासुर की उत्पत्ति | लोमश द्वारा अन्यान्य तीर्थों के महत्त्व का वर्णन | मान्धाता की उत्पत्ति | मान्धाता का संक्षिप्त चरित्र | सोमक और जन्तु का उपाख्यान | सोमक और पुरोहित का नरक तथा पुण्यलोक का उपभोग | कुरुक्षेत्र के प्लक्षप्रस्रवण तीर्थ की महिमा | लोमश द्वारा तीर्थों की महिमा तथा उशीनर कथा का आरम्भ | उशीनर द्वारा शरणागत कबूतर के प्राणों की रक्षा | अष्टावक्र के जन्म का वृत्तान्त | अष्टावक्र का जनक के दरबार में जाना | अष्टावक्र का जनक के द्वारपाल से वार्तालाप | अष्टावक्र का जनक से वार्तालाप | अष्टावक्र का शास्त्रार्थ | अष्टावक्र के अंगों का सीधा होना | कर्दमिलक्षेत्र आदि तीर्थों की महिमा | रैभ्य तथा यवक्रीत मुनि की कथा | ऋषियों का अनिष्ट करने से मेघावी की मृत्यु | यवक्रीत का रैभ्य की पुत्रवधु से व्यभिचार तथा मृत्यु | भरद्वाज का पुत्रशोक में विलाप | भरद्वाज का अग्नि में प्रवेश | अर्वावसु की तपस्या तथा रैभ्य, भरद्वाज और यवक्रीत का पुनर्जीवन | पांडवों की उत्तराखण्ड यात्रा | भीमसेन का उत्साह तथा पांडवों का हिमालय को प्रस्थान | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन की चिन्ता तथा उनके गुणों का वर्णन | पांडवों द्वारा गंगा की वन्दना | लोमश द्वारा पांडवों से नरकासुर वघ की कथा | लोमश द्वारा पांडवों से वसुधा उद्धार की कथा | गन्दमाधन यात्रा में पांडवों का आँधी-पानी से सामना | द्रौपदी की मूर्छा तथा भीम के स्मरण से घटोत्कच का आगमन | घटोत्कच की सहायता से पांडवों का गंधमादन पर्वत तथा बदरिकाश्रम में प्रवेश | बदरीवृक्ष, नरनारायणाश्रम तथा गंगा का वर्णन | भीमसेन का सौगन्धिक कमल लाने के लिए जाना | भीमसेन की कदलीवन में हनुमान से भेंट | भीमसेन और हनुमान का संवाद | हनुमान का भीमसेन से रामचरित्र का संक्षिप्त वर्णन | हनुमान द्वारा चारों युगों के धर्मों का वर्णन | हनुमान द्वारा भीमसेन को विशाल रूप का प्रदर्शन | हनुमान द्वारा चारों वर्णों के धर्मों का प्रतिपादन | भीमसेन को आश्वासन देकर हनुमान का अन्तर्धान होना | भीमसेन का सौगन्धिक वन में पहुँचना | क्रोधवश राक्षसों का भीमसेन से सामना | भीमसेन द्वारा क्रोधवश राक्षसों की पराजय | युधिष्ठिर आदि का सौगन्धिक वन में भीमसेन के पास पहुँचना | पांडवों का पुन: नरनारायणाश्रम में लौटना
जटासुरवध पर्व
जटासुर द्वारा द्रौपदी, युधिष्ठिर, नकुल एवं सहदेव का हरण | भीमसेन द्वारा जटासुर का वध
यक्षयुद्ध पर्व
पांडवों का नरनारायणाश्रम से वृषपर्वा के जाना | पांडवों का राजर्षि आर्ष्टिषेण के आश्रम पर जाना | आर्ष्टिषेण का युधिष्ठिर के प्रति उपदेश | पांडवों का आर्ष्टिषेण के आश्रम पर निवास | भीमसेन द्वारा मणिमान का वध | कुबेर का गंधमादन पर्वत पर आगमन | कुबेर की युधिष्ठिर से भेंट | कुबेर का युधिष्ठिर आदि को उपदेश तथा सान्त्वना | धौम्य द्वारा मेरु शिखरों पर स्थित ब्रह्मा-विष्णु आदि स्थानों का वर्णन | धौम्य का युधिष्ठिर से सूर्य-चन्द्रमा की गति एवं प्रभाव का वर्णन | पांडवों की अर्जुन के लिए उत्कंठा
निवातकवच युद्ध पर्व
अर्जुन का स्वर्गलोक से आगमन तथा भाईयों से मिलन | इन्द्र का आगमन तथा युधिष्ठिर को सान्त्वना देना | अर्जुन का अपनी तपस्या यात्रा के वृत्तान्त का वर्णन | अर्जुन द्वारा शिव से संग्राम एवं पाशुपतास्त्र प्राप्ति की कथा | अर्जुन का युधिष्ठिर से स्वर्गलोक में प्राप्त अपनी अस्त्रविद्या का कथन | अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्ध की तैयारी का कथन | अर्जुन का पाताल में प्रवेश | अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्धारम्भ | अर्जुन और निवातकवचों का युद्ध | अर्जुन के साथ निवातकवचों के मायामय युद्ध का वर्णन | अर्जुन द्वारा निवातकवचों का वध | अर्जुन द्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोम तथा कालकेयों का वध | इन्द्र द्वारा अर्जुन का अभिनन्दन | युधिष्ठिर की अर्जुन से दिव्यास्त्र-दर्शन की इच्छा | नारद आदि का अर्जुन को दिव्यास्त्र प्रदर्शन से रोकना
आजगरपर्व
भीमसेन की युधिष्ठिर से बातचीत | पांडवों का गंधमादन से प्रस्थान | पांडवों का बदरिकाश्रम में निवास | पांडवों का सरस्वती-तटवर्ती द्वैतवन में प्रवेश | द्वैतवन में भीमसेन का हिंसक पशुओं को मारना | भीमसेन को अजगर द्वारा पकड़ा जाना | भीमसेन और सर्परूपधारी नहुष का वार्तालाप | युधिष्ठिर द्वारा भीम की खोज | युधिष्ठिर का सर्परूपधारी नहुष के प्रश्नों का उत्तर देना | सर्परूपधारी नहुष का भीमसेन को छोड़ना तथा सर्पयोनि से मुक्ति
मार्कण्डेयसमास्यापर्व
युधिष्ठिर आदि का पुन: द्वैतवन से काम्यकवन में प्रवेश | पांडवों के पास कृष्ण, मार्कण्डेय तथा नारद का आगमन | मार्कण्डेय का युधिष्ठिर से कर्मफल-भोग का विवेचन | तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणों का माहात्म्य | ब्राह्मण महिमा के विषय में अत्रिमुनि तथा राजा पृथु की प्रशंसा | तार्क्ष्यमुनि और सरस्वती का संवाद | वैवस्वत मनु का चरित्र और मत्स्यावतार कथा | चारों युगों की वर्ष-संख्या तथा कलियुग के प्रभाव का वर्णन | प्रलयकाल का दृश्य और मार्कण्डेय को बालमुकुन्द के दर्शन | मार्कण्डेय का भगवान के उदर में प्रवेश और ब्रह्माण्डदर्शन | मार्कण्डेय का भगवान बालमुकुन्द से वार्तालाप | बालमुकुन्द का मार्कण्डेय को अपने स्वरूप का परिचय देना | मार्कण्डेय द्वारा कृष्ण महिमा का प्रतिपादन | युगान्तकालिक कलियुग समय के बर्ताव का वर्णन | कल्कि अवतार का वर्णन | भगवान कल्कि द्वारा सत्ययुग की स्थापना | मार्कण्डेय का युधिष्ठिर के लिए धर्मोपदेश | इक्ष्वाकुवंशी परीक्षित का मण्डूकराज की कन्या से विवाह | शल और दल के चरित्र तथा वामदेव मुनि की महत्ता | इन्द्र और बक मुनि का संवाद | सुहोत्र और शिबि की प्रशंसा | ययाति द्वारा ब्राह्मण को सहस्र गौओं का दान | सेदुक और वृषदर्भ का चरित्र | इन्द्र और अग्नि द्वारा राजा शिबि की परीक्षा | नारद द्वारा शिबि की महत्ता का प्रतिपादन | इन्द्रद्युम्न तथा अन्य चिरजीवी प्राणियों की कथा | मार्कण्डेय द्वारा विविध दानों का महत्त्व वर्णन | मार्कण्डेय द्वारा विविध विषयों का वर्णन | उत्तंक मुनि की कथा | उत्तंक का बृहदश्व से धुन्धु वध का आग्रह | ब्रह्मा की उत्पत्ति | विष्णु द्वारा मधु-कैटभ का वध | धुन्धु की तपस्या और ब्रह्मा से वर प्राप्ति | कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध | कुवलाश्व को देवताओं से वर की प्राप्ति | पतिव्रता स्त्री और माता-पिता की सेवा का माहात्म्य | कौशिक ब्राह्मण तथा पतिव्रता का उपाख्यान | कौशिक का धर्मव्याध के पास जाना | धर्मव्याध द्वारा वर्णधर्म का वर्णन और जनकराज्य की प्रशंसा | धर्मव्याध द्वारा शिष्टाचार का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा हिंसा और अहिंसा का विवेचन | धर्मव्याध द्वारा धर्म की सूक्ष्मता, शुभाशुभ कर्म और उनके फल का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति के उपायों का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा विषय सेवन से हानि, सत्संग से लाभ का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा ब्राह्मी विद्या का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा पंचमहाभूतों के गुणों का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा इन्द्रियनिग्रह का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा तीन गुणों के स्वरूप तथा फल का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा प्राणवायु की स्थिति का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा परमात्म-साक्षात्कार के उपाय | धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का दिग्दर्शन | धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का उपदेश | धर्मव्याध का कौशिक ब्राह्मण से अपने पूर्वजन्म की कथा कहना | धर्मव्याध-कौशिक संवाद का उपंसहार | अग्नि का अंगिरा को अपना प्रथम पुत्र स्वीकार करना | अंगिरा की संतति का वर्णन | बृहस्पति की संतति का वर्णन | पांचजन्य अग्नि की उत्पत्ति | पांचजन्य अग्नि की संतति का वर्णन | अग्निस्वरूप तप और भानु मनु की संतति का वर्णन | सह अग्नि का जल में प्रवेश | अथर्वा अंगिरा द्वारा सह अग्नि का पुन: प्राकट्य | इन्द्र द्वारा केशी से देवसेना का उद्धार | इन्द्र का देवसेना के साथ ब्रह्मा और ब्रह्मर्षियों के आश्रम पर जाना | अद्भुत अग्नि का मोह और उनका वनगमन | स्कन्द की उत्पत्ति | स्कन्द द्वारा क्रौंच आदि पर्वतों का विदारण | विश्वामित्र का स्कन्द के जातकर्मादि तेरह संस्कार करना | अग्निदेव आदि द्वारा बालक स्कन्द की रक्षा करना | इन्द्र तथा देवताओं को स्कन्द का अभयदान | स्कन्द के पार्षदों का वर्णन | स्कन्द का इन्द्र के साथ वार्तालाप | स्कन्द का देवताओं के सेनापति पद पर अभिषेक | स्कन्द का देवसेना के साथ विवाह | कृत्तिकाओं को नक्षत्रमण्डल में स्थान की प्राप्ति | मनुष्यों को कष्ट देने वाले विविध ग्रहों का वर्णन | स्कन्द द्वारा स्वाहा देवी का सत्कार | रुद्रदेव के साथ स्कन्द और देवताओं की भद्रवट यात्रा | देवासुर संग्राम तथा महिषासुर वध | कार्तिकेय के प्रसिद्ध नामों का वर्णन
द्रौपदीसत्यभामासंवाद पर्व
द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को सती स्त्री के कर्तव्य की शिक्षा | द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को पतिसेवा की शिक्षा | सत्यभामा का द्रौपदी को आश्वासन
घोषयात्रा पर्व
पांडवों का समाचार सुनकर धृतराष्ट्र का खेद तथा चिंतापूर्ण उद्गार | शकुनि और कर्ण द्वारा दुर्योधन को पांडवों के पास जाने के लिए उभाड़ना | दुर्योधन द्वारा कर्ण और शकुनि की मंत्रणा स्वीकार करना | दुर्योधन आदि को द्वैतवन जाने हेतु धृतराष्ट्र की अनुमति | द्वैतवन में दुर्योधन के सैनिकों तथा गंधर्वों में कटु संवाद | कौरवों का गंधर्वों से युद्ध और कर्ण की पराजय | गंधर्वों द्वारा दुर्योधन आदि की पराजय और उनका अपहरण | कौरवों को छुड़ाने हेतु युधिष्ठिर का भीमसेन को आदेश | पांडवों का गंधर्वों के साथ युद्ध | पांडवों द्वारा गंधर्वों की पराजय | चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिर संवाद और दुर्योधन का छुटकारा | दुर्योधन का मार्ग में ठहरना और कर्ण द्वारा उसका अभिनन्दन | दुर्योधन का कर्ण को अपनी पराजय का समाचार बताना | दुर्योधन द्वारा अपनी ग्लानि का वर्णन तथा आमरण अनशन का निश्चय | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को राजा बनने का आदेश | कर्ण द्वारा समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन का निश्चय | दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना | दैत्यों का दुर्योधन को समझाना | दुर्योधन द्वारा अनशन की समाप्ति और हस्तिनापुर प्रस्थान | भीष्म का दुर्योधन को पांडवों से संधि करने का प्रस्ताव | कर्ण के क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजय के लिए प्रस्थान | कर्ण द्वारा सारी पृथ्वी पर दिग्विजय | कर्ण की दिग्विजय पर हस्तिनापुर में उसका सत्कार | दुर्योधन द्वारा वैष्णव यज्ञ की तैयारी | दुर्योधन के यज्ञ का आरम्भ तथा समाप्ति | कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर की चिन्ता तथा दुर्योधन की शासननीति
मृगस्वप्नोद्भव पर्व
पांडवों का काम्यकवन में गमन
व्रीहिद्रौणिक पर्व
व्यास का पांडवों के पास आगमन | व्यास का पांडवों से दान की महत्ता का वर्णन | दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा | महर्षि मुद्गल का देवदूत से प्रश्न करना | देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अपने आश्रम लौटना
द्रौपदीहरण पर्व
दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार | दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना | द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना | कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना | जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना | कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना | द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर | जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद | जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण | पांडवों द्वारा जयद्रथ का पीछा करना | द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन | पांडवों द्वारा जयद्रथ की सेना का संहार | युधिष्ठिर का द्रौपदी और नकुल-सहदेव के साथ आश्रम पर लौटना | भीम और अर्जुन द्वारा वन में जयद्रथ का पीछा करना
जयद्रथविमोक्षण पर्व
भीम द्वारा जयद्रथ को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के समक्ष उपस्थित करना | शिव द्वारा जयद्रथ से श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
रामोपाख्यान पर्व
युधिष्ठिर का अपनी दुरावस्था पर मार्कडेण्य मुनि से प्रश्न करना | राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन | रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति | कुबेर का रावण को शाप देना | देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना | राम के राज्याभिषेक की तैयारी | राम का वन को प्रस्थान | भरत की चित्रकूट यात्रा | राम द्वारा राक्षसों का संहार तथा रावण-शूर्पणखा वार्तालाप | राम द्वारा मारीच का वध | रावण द्वारा सीता का अपहरण | रावण द्वारा जटायु वध एवं राम द्वारा उसका अंत्येष्टि संस्कार | राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध | राम और सुग्रीव की मित्रता | राम द्वारा बाली का वध | अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन | रावण और सीता का संवाद | राम का सुग्रीव पर कोप | सुग्रीव का सीता की खोज में वानरों को भेजना | हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना | वानर सेना का संगठन | नल द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण | विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश | अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना | राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम | राम और रावण की सेनाओं का द्वन्द्वयुद्ध | प्रहस्त और धूम्राक्ष का वध | रावण द्वारा युद्ध हेतु कुम्भकर्ण को जगाना | कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध | इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा | राम-लक्ष्मण का अभिमंत्रित जल से नेत्र धोना | लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित का वध | रावण का सीता के वध हेतु उद्यत होना | राम और रावण का युद्ध तथा रावण का वध | राम का सीता के प्रति संदेह | देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन | राम का आयोध्या आगमन तथा राज्याभिषेक | मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति | सावित्री का पतिवरण के लिए विभिन्न देशों में भ्रमण | सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय | सावित्री और सत्यवान का विवाह | सावित्री की व्रतचर्या | सावित्री का सत्यवान के साथ वन में जाना | सावित्री और यम का संवाद | यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना | सावित्री और सत्यवान का वार्तालाप | राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता | सावित्री द्वारा यम से प्राप्त वरों का वर्णन | द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति
कुण्डलाहरण पर्व
सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने के लिए सचेत करना | कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना | सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने का आदेश | कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय | कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन | कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना | कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या | कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश | कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन | कुन्ती-सूर्य संवाद | सूर्य द्वारा कुन्ती के उदर में गर्भस्थापन | कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप | अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति | कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन | कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति | इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना
आरणेय पर्व
ब्राह्मण की अरणि एवं मन्थन काष्ठ विषयक प्रसंग | युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जल लाने का आदेश | नकुल आदि चार भाइयों का सरोवर तट पर अचेत होना | यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद | यक्ष और युधिष्ठिर का प्रश्नोत्तर | युधिष्ठिर के उत्तर से संतुष्ट यक्ष द्वारा चारों भाइयों को जीवित करना | यक्ष का धर्म के रूप में प्रकट होकर युधिष्ठिर को वरदान देना | युधिष्ठिर को महर्षि धौम्य द्वारा समझाया जाना | भीमसेन का उत्साह और पांडवों का परस्पर परामर्श

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः