पियहि निरखि प्यारी हँसि दीन्हौ।
रीझे स्याम अंग अंग निरखत, हँसि नागरि उर लीन्हौ।।
आलिंगन दै अधर दसन खडि, कर गहि चिबुक उठावत।
नासा सौ नासा ले जोरत, नैन नैन परसावत।।
इहि अंतर प्यारी उर निरख्यौ, झभकि भई तब न्यारी।
'सूर' स्याम मोकौ बिखरावत, उर न्याए धरि प्यारी।।2412।।