द्रौपदी का नाम ही पांचाली था। महाभारत में पाँच पांडवों की रानी थी। उसका जन्म महाराज द्रुपद के यहाँ यज्ञकुण्ड से हुआ था। अतः यह ‘यज्ञसेनी’ भी कहलाई। द्रौपदी पूर्वजन्म में किसी ऋषि की कन्या थी। उसने पति पाने की कामना से तपस्या की थी। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की। उसने भगवान शंकर से पांच बार कहा कि "वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती है।" शंकर जी ने कहा कि अगले जन्म में उसके पांच भरतवंशी पति होंगे, क्योंकि उसने पति पाने की कामना पांच बार दोहरायी थी।[1]
- इन्हें भी देखें: द्रौपदी
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 166, 168।
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