(पहिलै) प्रीति करि कहा पोच लागे करन।
ऊधौ कमलनयन सौं कहियौ, गोवरधन की धरन।।
अब दै विरह अनल लगे बारन, तब न दई दौ जरन।
सकट विपति परे पर राखे, लई प्रीति करि सरन।।
तुम्हरी बालदसा ब्रजनायक सुमिरि सुमिरि अति झुरन।
‘सूरज’ स्याम प्रान अब तजिहौ, बेगि दिखावहु चरन।।4012।।