परेखौ कौन बोल कौ कीजै ।
ना हरि जाति न पाँति हमारी, कहा मानि दुख लीजै ।
नाहिन मोरचद्रिका माथै, नाहिंन उर बनमाल ।
नहिं सोभित पुहुपनि के भूषन, सुंदर स्याम तमाल ।।
नंदनँदन गोपी-जन-बल्लभ, अब नहिं कान्ह कहावत ।
वासुदेव, जादवकुलदीपक, बंदी जन बरनावत ।।
बिसरयौ सुख नातौ गोकुल कौ, और हमारे अंग ।
‘सूर’ स्याम वह गई सगाई, वा मुरली के संग ।। 3192 ।।