परम प्रेममयी श्रीराधा-गोपीजन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

Prev.png
राग हमारे - तीन ताल


परम प्रेममयी श्रीराधा-गोपीजन सब कायब्यूह।
कृष्णप्रेम-परिपूर्ण हृदय सब दिव्य पूर्ण रस-भाव-समूह॥
क्षमा-क्रोध, सुख-दुःख, प्रशंसा-निन्दा, मान-नीच अपमान।
जीवन-मृत्यु, विराग-राग, शुचि त्याग-भोग सब, ज्ञानाज्ञान॥
शान्ति-‌अशान्ति, विवेक-भ्रान्ति सब, हास्य-रुदन, गायन-चीत्कार।
सभी श्याम प्रियतमको लेकर एकमात्र शुचि कर्म-विचार॥
कृष्णप्रेम-रस-भावित-मति सब कृष्णमिलन-हित आकुल-प्राण।
रहतीं सदा समुत्सुक करने रूप-सुधा-मधु-रसका पान॥
इह-परके विलास-सुख-भोगोंका करके आत्यन्तिक त्याग।
कृष्णप्रेममत्ता थीं वे सब मूर्तिमान प्रियतम-‌अनुराग॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः