- लाल कछु कीजे भोजन -परमानंददास
- कहा करौ बैकुंठहि जाय -परमानंददास
- बृंदावन क्यों न भए हम मोर -परमानंददास
- ब्रज के बिरही लोग बिचारे -परमानंददास
- कौन रसिक है इन बातन कौ -परमानंददास
- मैया मोहिं ऐसी दुलहिन भावै -परमानंददास
- यह मांगो गोपीजन वल्लभ -परमानंददास
- आज दधि मीठो मदन गोपाल -परमानंददास
- माई मीठे हरि जू के बोलना -परमानंददास
- मंगल माधो नाम उचार -परमानंददास
- यह प्रसाद हों पाऊं श्री यमुना जी -परमानंददास
- चैत्र मास संवत्सर -परमानंददास
- प्रथम गोचारण चले कन्हाई -परमानंददास
- कापर ढोटा नयन नचावत -परमानंददास
- आज दधि कंचन मोल भई -परमानंददास
- पतंग की गुडी उडावन लागे व्रजबाल -परमानंददास
- श्री जमुना जी दीन जानि मोहिं दीजे -परमानंददास
- नन्द बधाई दीजे हो ग्वालन -परमानंददास
- रक्षा बंधन को दिन आयो -परमानंददास
- राखी बांधत जसोदा मैया -परमानंददास
- जागो मेरे लाल जगत उजियारे -परमानंददास
- गोपी प्रेम की ध्वजा -परमानंददास
- तिहारे चरन कमल को माहत्म्य -परमानंददास
- डोल माई झूलत हैं ब्रजनाथ -परमानंददास
- रंचक चाखन देरी दह्यो -परमानंददास
- यह धन धर्म ही तें पायो -परमानंददास
- पद्म धर्यो जन ताप निवारण -परमानंददास
- आज बधाई को दिन नीको -परमानंददास
- श्री यमुने की आस अब करत है दास -परमानंददास
- आज ललन की होत सगाई -परमानंददास
- कुंज भवन में मंगलचार -परमानंददास
- गावत गोपी मधु मृदु बानी -परमानंददास
- श्री यमुने सुखकारनी प्राण प्रतिके -परमानंददास
- श्री यमुने पिय को बस तुमजु कीने -परमानंददास
- श्री यमुने के साथ अब फ़िरत है नाथ -परमानंददास
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