परबत पहिलेहिं खोदि बहाऊँ। बज्रनि मारि पाताल पठाऊँ।।
फूलि फूलि जिहिं पूजा कीन्हौ। नैंकु न राखौं ताकौं चीन्हौ।।
नंद गोप नैननि यह देखैं। बड़े देवता कौ सुख पेखैं।।
निंदत मोहिं करी गिरि-पूजा। जासौ कहत और नहिं दूजा।।
गरब कहत गौबरधन गिरि कौ। परबत माहिं आहि सो किरिकौ।।
डूंगर कौ बल उनहिं बताऊँ। ता पाछैं ब्रज खोदि बहाऊँ।।
राखौं नहिं काहूँ सब मारौं। ब्रज गोकुल कौं खोज निवारौं।।
को जानै कहँ गिरि कहँ गोकुल। भुव पर नहिं राखौं उनकौ कुल।।
सूरदास यह इंद्र-प्रतिज्ञा। ब्रज बासिनि सब करी अवज्ञा।।925।।