परत मन छिन नैकहु नहिं चैन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग आसावरी - तीन ताल


परत मन छिन नैकहु नहिं चैन।
ब्याकुल ब्यथित चित्त दिन बीतत, परत नींद नहिं रैन॥
घर-धन-परिजन हुते सबहि अति प्यारे, हुतौ ममत्व।
अब न सुहात कतहुँ, को‌उ कबहूँ, सब महँ भयौ समत्व॥
मन न करत कछु तिन के आवन-जावन की परवाह।
एकमात्र प्रियतम-दरसन की बढ़त नित न‌ई चाह॥
सुरति न करत अन्य की मन, तजि सगरी व्याधि-‌उपाधि।
’प्रिय-मिलनेच्छा’ रूप भयौ बस, लागी सहज समाधि॥
मिटी असांति-विथा-ब्याकुलता, पायौ सब बिधि चैन।
इच्छा तीब्र अनन्य मिलन की भ‌ई सकल सुख-‌ऐन॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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