पनघट रोके रहत कन्हाई।
जमुना-जल कोउ भरन न पावै, देखत हौं फिरि जाई।।
तबहिं स्याम इक बुद्धि उपाई, आपुन रहे छपाई।
तट ठाढ़े जे सखा संग के तिनकौं लियौ बुलाई।।
बैठारयौ ग्वालनि कौं द्रुम-तर, आपुन फिरि फिरि देखत।
बड़ी बार भई कोउ न आई सूर स्याम मन लेखत।।1403।।