पतियां मैं कैसे लिखूं -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहयातना


राग सुख सोरठ


पतियाँ मैं कैसे लिखूँ, लिखिही न जाइ ।।टेक।।
कलम धरत[1] मेरों कर कंपत, हिरदो रहो घर्राई ।
बात कहूँ मोहि बात न आवै, नैन रहै झर्राई ।
कि‍स विध चरण कमल मैं गहिहौं, सबहि अंग थर्राई ।
मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर, सबही दुख बिसराई ।।77।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भरत
  2. लिखिही=लिखिही। धरत=पकड़ते ही, हाथ में लेते ही घर्राई= जोरों से धड़कने लगता है। झर्राई= वेग के साथ आँसू बहा है। थर्राई= थर थर कांप रहा है।

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