न्याय तजी स्यामा गोपाल।
थोरी कृपा बहुत गरबानी, ओछी बुधि ब्रजबाल।।
तै कछु कपट सबनि सौं कीन्यौ, अपजस तैं न डरानी।
हम एकहि सँग एकहि मति सब, कोऊ नहिं बिलगानी।।
हम चातकि, घन हरि नंदनंदन, बरषनि लगि हित कीन्यौ।
तुम मद प्रबल पवन सम सजनी प्रेम बीच दुख दीन्यौ।।
जानी दीन दुखित सब सुख-निधि, मोहन बेनु बजायो।
सूर स्याम तब दरस-परस करि, मिलि संताप नसायो।।1127।।