नैन सफल अब भए हमारे।
देव लोक नीसान बजाए, बरषत सुमन सुधारे।।
जै जै धुनि किन्नर-मुनि गावत, निरखत जोग बिसारे।
सिव-सारद-नारद यह भाषत, धनि-धनि नंद-दुलारे।।
सुर ललना पति-गति विसराए, रहीं निहारि-निहारि।
जात न बनै देखि सुख हरि कौ, आईं लोक बिसारि।।
यह छबि तिहूँ भुवन कहूँ नाहीं, जो बृंदाबन-धाम।
सुंदरता रस गुन की सीवाँ, सूर राधिका स्याम।।1045।।