नैन मिले हरि कौ ढरि भारी।
जैसै नीर नीर मिलि एकै, कौन सकै निरुवारी।।
वातचक्र ज्यौ तृनहिं उड़त लै, देह संग ज्यौ छाही।
पवन बस्य ज्यौ उड़त पताका, ये तैसे छवि माही।।
मन पाछै, ये आगै धावत, इंद्री इनहिं लजाने।
'सूर' स्याम जैसे इन जाने, त्यो काहूँ नहिं जाने।।2286।।