नैन भए अधिकारी जाइ।
यह तुम बात सुनी सखि नाही, मन आए गए भेद बताइ।।
जब आवै कबहूँ ढिग मेरै, तब तब यहै कहत हैं आइ।
हमही लै मिलयौ हम देखत, स्याम रूप मैं गए समाइ।।
अब बोऊ पछितात बात कहि, उनहूँ कौ वै भए बलाइ।
अपनौ कियौ तुरत फल पायौ, ऐसी मन कीन्ही अधमाइ।
इंद्री मन अब नैननि पाछै, ऐसे उनि बस किये कन्हाइ।
'सूरदास' लोचन की महिमा, कहा कहै कछु कही न जाइ।।2263।।