नैन तौ कहे मै नहीं मेरे।
बारही बार कहि हटकि राखत कितक, गए हरि संग नहि रहे घेरे।।
ज्यौ ब्याध फंद तै छुटत खग उडि चलत, तहाँ फिरि तकत नहिं त्रास माने।
जाइ बन द्रुमनि मै दुरत त्यौही गए, स्याम-तनु-रूप-बन मै समाने।।
पालि इतने किये, आजु उनके भए, माल करि लए अब स्याम उनकौ।।
'सूर' यह कहतिं ब्रजनारि ब्याकुल प्रेम, नैन लै गए पछिताति मन कौ।।2249।।