नैन कहै न मानत मेरे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


नैन कहै न मानत मेरे।
हारि मानि कै रही मौन ह्वै, निकट सुनत नहि टेरे।।
ऐसे भए मनौ नहिं मेरे, जबहिं स्याम मुख हेरे।
मै पछिताति जबहि सुधि आवति, ज्यौ दीन्हौ मोहिं डेरे।।
एते पर कबहूँ जब आवत, झरषत लरत घनेरे।
मोहूँ बरबस उतहि चलावत, दूत भए उन केरे।।
लोक-वेद-कुलकानि न मानत, अतिही रहत अनेरे।
'सूर' स्याम धो कहा ठगौरी, लाइ कियौ धरि चेरे।।2352।।

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