नैना बहुत भाँति हटके -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


नैना बहुत भाँति हटके।
बुधि-बल-छल-उपाइ करि थाकी, नैकु नही मटके।।
इत चितवत, उतही फिरि लागत, रहत नही अटके।
देखतही उडि गए हाथ तै, भए बटा नट के।।
एकहि परनि परे खग ज्यौ, हरि-रूप-माँझ लटके।
मिले जाइ हरदी चूना ज्यौ, फिरि न 'सूर' फटके।।2389।।

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