नैना पंकज पंक खचे।
मोहनमदन स्याममुख निरखत, भ्रुवनि विलास रचे।।
बोलनि हँसनि विराजमान अति स्रुति अवतंस सचे।
जनु पिनाक की ह्रास लागि, सारँग ससि सरन बचे।।
चँद चकोर चातक ज्यौ जलधर हरि पर हरषि लचे।
पुहुप बास लै मधुप सैल बन घन करि भवन रचे।।
पर प्रीति कै कुंड महागज काढत बहुत पचे।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस कौ मज्जन हेत सचे।। 84 ।।