नैना नही सखी वै मेरे -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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नैना नही सखी वै मेरे।
बरजत ही वै गए सखी री भए स्याम के चेरे।।
जद्यपि जतन किये जुगवति ही स्यामल सोभा घेरे।
तउ मिलि गए दूध पानी ज्यौ निबरत नही निबेरे।।
कुल-अंकुस आरज-पथ तजि कै लाज सकुच दई डेरे।
‘सूर’ स्याम कै रूप लुभाने कैसेहुँ फिरत न फेरे।। 27 ।।

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