नैना ढीठ अतिही भए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नैना ढीठ अतिही भए।
लाजलकुट दिखाइ त्रासी, नैकुहूँ न नए।।
तोरि पलककपाट घूँघटओट मेटि गए।
मिले हरि कौ जाइ आतुर, है जु गुननि मए।।
मुकुट, कुंडल, पीत पट कटि, ललित वेष ठए।
जाइ लुबधे निरखि वा छवि, 'सूर' नंदजए।।2363।।

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