नैना खोज परे है ऐसे।
नैकु रही हरि मूरति हिरदै, डाह मरत है जैसे।।
मन तौ गयौ इंद्रियनि लैकै, बुधि-मति-ज्ञान समेत।
जिनकी आस सदा हम राखे, तिन दुख दीन्हौ जेत।।
आपुन गए कौन सो चालै, करत ढिठाई और।
नैकु रही छवि दुति हिरदै, मै, ताहि लगावत ठौर।।
गए रहे आए इहि कारज, भरि ढारत है ताहि।
'सूरदास' नैननि की महिमा, को है कहियै काहि।।2302।।