नैना कह्यौ मानत नाहिं।
लोकलज्जा वेदमारग, तजत नाहिं डराहिं।
स्यामरस मैं रहत पूरन, पुलकि अंग न मोहिं।।
पियहि के गुन गुनत उर मै, दरस देखि सिहाहिं।
बढ़त हमको नैकु नाही, मरहि जौ पछिताहि।।
धरनि मन वच धरी ऐसी, कर्मना करि ध्याहिं।
'सूर' प्रभु पद-कमल-अलि ह्वै, रैनि दिन न भुलाहिं।।2348।।