नैना ओछे चोर अरी री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


नैना ओछे चोर अरी री।
स्याम-रूप-निधि नोखै पाई, देखत गए भरी री।।
अंग-अंग छवि चित्त चलायौ, सो कछु रहति परी री।
कहा लेहि, कह तजै, बिबस भए, तैसिय करनि करी री।।
पुनि पुनि जाइ एक इक लेते, आतुर धरनि धरी री।
भोरे भए भोरसौ ह्वै गयौ, धरे जगार परी री।।
जो कोउ काज करै बिनु बूझै, पेलनि लहत हरी री।
'सूर' स्याम बस परे जाइ कै ज्यौ मोहि तजी खरी री।।2300।।

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