नैना अब लागे पछतान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


नैना अब लागे पछतान ।
बिछुरत उमँगि नीर भरि आए, अब न कछू अवासन ।।
तब मिलि मिलि कत प्रीति बढ़ावत, अब सो भई विष बान ।
तब तौ प्रीति करी आतुर ह्वै, समुझी कछु न अजान ।।
अब यह काम दहत निसि बासर, नाही मेरे मान ।
भयौ विदेस मधुपुरी हमकौ, क्यौहूँ होत न जान ।।
अति चटपटी देखिवै चाहत, अब लागे अकुलान ।
'सूरदास' प्रभु दीन दुखित ये, लै न गए सँग प्रान ।। 3248 ।।

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