नैनन बनज बसाउरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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प्रेमाभिलाषा

शब्‍द


नैनन बनज बसाउँरी, जो मैं साहिब पाऊँ ।। टेक ।।
इन नैनन मेरा साहिब बसता, डरती पलक न नाऊँ, री ।
त्रिकुटी महल में बना है झरोखा, तहाँसे झाँकी लगाऊँ, री ।
सुत्र महल में सुरत जमाउ, सुख की सेज बिछाउ, री ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, बार बार बलि जाऊँ री ।।12।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बनज = कमल, कमल के समान कोमल। साहिब = इष्टदेव। पलक न नाऊँ = आँखों पर पलकें न गिराऊँ, आँखें खुली ही रक्खूँ। त्रिकुटी महल = दोनों भौहों के मध्य का स्थान। भरोखा = छिद्र रूपी खिड़की। झाँकी लगाऊँ = ध्यान का लक्ष्य बनाऊँ। सुन्न महन में = ब्रह्मरंध्र में। सुरत = ध्यान, समाधि। सुख...बिछाऊँ = आनंदमग्न हो जाऊँ।
    विशेष - ब्रह्मरंघ का ब्रह्मांड द्वार उस गुप्त छिद्र को कहते है जो साधकों के अनुसार मस्तक के मध्य भाग वा मूर्द्धा में वर्तमान है और जिससे होकर प्राणों के निकलने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। ब्रह्मरंघ में ध्यान लगाकर समाधिस्थ होने से परमानंद का अनुभव होता है।

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