नैननि होड़ बदी बरषा सौ।
राति दिवस बरषत झर लाए, दिन दूनी करषा सौ।।
चारि मास बरषै जल खूँटै, हारि समुझि उन मानी।
ये तेहूँ पर धार न खंडत, इनकी अकथ कहानी।।
एते मान चढ़ाइ चढी अति तजी पलक की सीव।
मैं जानी दीनी उन मानौ, महाप्रलय की नीव।।
तुम पै होइ सु करहु कृपानिधि, ये ब्रज के व्यौहार।
अबकी बेर पाछिले नातै, ‘सूर’ लगावहु पार।।4116।।