नैननि निरखि हरि कौ रूप -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


नैननि निरखि हरि कौ रूप।
चित्त दै मुख चितै माई, कमल ऐन अनूप।।
कुटिल केस सुदेस अलिगन, नैन सरद-सरोज।
मकर-कुंडल-किरनि की छबि, दुरत फिरत मनोज।।
अरुन अधर, कपोल, नासा सुभग, ईषद-हास।
दसन दामिनी, लजत नव ससि, भ्र‍कटि मदन-बिलास।।
अंग अंग अंनग जीते, रुचिर उर बनमाल।
सूर सोभा हृदय पूरन देत सुख गोपाल।।1378।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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