नृत्यत स्याम नाना रंग।
मुकुट-लटकनि, भृकुटि-भटकनि, धरे नटवर अंग।।
चलत गति कटि कुनित किंकिनि, घूँघुरू भनकार।
मनौ हंस रसाल-बानी, अरस-परस बिहार।।
लसति कर पहुँची उपाजै, मुद्रिका अति जोति।
भाव सौं भुज फिरत जबहीं, तबहिं सोभा होति।।
कबहुँ नृत्यत नारि-गति पर, कबहुँ नृत्यत आपु।
सूर के प्रभु रसिक के मनि, रच्यौ रास प्रतापु।।1056।।