सजल-मेघ-घन-स्यामल-सुंदर, बाम-अंग अति सोहै।
रुप अनूप मनोहर मोहै, ता उपना कहि को है।।
सहज माधुरी अंग-अंग-प्रति, सुबस किये ब्रज-धनी।
अखिल लोक-लोकेस बिलोकत, सब लोकनि के गनी।।
कबहुँक हरि संग नृत्यति स्यामा, स्रमकन हैं राजत यौं।
मानहुँ अधर सुधा के कारन, ससि पूज्यौ मुक्ता सौं।।
रमा, उमा अरु सची अरुंधति, दिन प्रति देखन आवैं।
निरखि कुसुमगन बरषत सुरगन, प्रेम मुदित जस गावैं।।
रुप-रासि, सुख रासि राधिके, सोल महा गुन-रासी।
कृष्न–चरन ते पावहिं स्यामा, जे तुव चरन उपासी।।
जग-नायक, जगदीस-पियारी, जगत-जननि जगरानी।
नित बिहार गोपाललाल संग, वृंदावन रजधानी।।
अगतिनि की गति, भक्तनि की पति राधा मंगलदानी।
असरन-सरनी, भव-भय-हरनी, वेद पुरान बखानी।।
रसना एक नहीं सत कोटिक, सोभा अमित अपार।
कृष्न-भक्ति दोजै श्रीराधे सूरदास बलिहार।।1055।।