नीकैं देहु न मेरौ गिंड़ुरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


नीकैं देहु न मेरौ गिंड़ुरी।
लै जैहैं धरि जसुमति आगैं, आवहु री सब मिलि इक झुंडरी।।
काहूँ नहीं डरात कन्‍हाई, बाट-घाट तुम करत अचगरी।
जमुना-दह गिंडुरी फटकारी, फोरी सब मटुकी अरु गगरी।।
भली करी यह कुंवर कन्‍हाई, आजु मेटिहैं तुम्‍हरी लँगरी।
चलीं सूर जसुमति के आगैं, उरहन लै ब्रज-तरुनी सगरी।।1416।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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