नीकैं तप कियौ तनु गारि।
आपु देखत कदम पर चढ़ि, मानि लियौ मुरारि।।
बर्ष भर ब्रत-नेम-संजम, स्रम कियौ मोहिं काज।
कैसे हूँ मोहिं भजै कोऊ, मोहिं बिरद की लाज।।
धन्य ब्रत इन कियौ पूरन, सीत तपति निवारि।
काम-आतुर भजीं मोकौं, नव तरुनि ब्रज-नारि।।
कृपा-नाथ कृपाल भए तब, जानि जन की पीर।
सूर-प्रभु अनुमान कीन्हौ, हरौं इनके चीर।।783।।