नींदलड़ी नहिं आवै सारी रात -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहयातना


राग पहाड़ी


नींदलड़ी नहिं आवै सारी रात, किस विधि होइ परभात ।।टेक।।
चमक उठी सुपने सुध भूली, चन्‍द्रकला न सोहात ।
तलफ तलफ जिव जाय हमारो, कबरे मिले दीनानाथ ।
भइहूँ दिवानी तन सुध भूली, कोई न जानी म्‍हाँरी बात ।
मीराँ कहै बीती सोइ जानै, मरण जीवण उन हाथ ।।76।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नींदलड़ी = नींद। परभात = सबेर। चमक = चौंक। चंद्र कला = चाँदनी।

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