निरगुन कौन देस कौ बासी?
मधुकर कहि समुझाइ सौह दै, बूझति साँच न हाँसी।।
को है जनक, कौन है जननी, कौन नारि, को दासी?
कैसो बरन, भेष है कैसो, किहिं रस मैं अभिलाषी?
पावैगौ पुनि कियौ आपनौ, जो रे करैगौ गाँसी।
सुनत मौन ह्वै रह्यौ बावरौ, ‘सूर’ सबै मति नासी।।3631।।