निरखि स्‍याम हलधर मुसुकाने -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग गौरी



निरखि स्‍याम हलधर मुसुकाने।
को बाँधै, को छोरै इनकौं, यह महिमा येई पै जाने।
उतपति-प्रलय करत हैं येई, सेष सहस मुख सुजस बखाने।
जमलार्जुन-तरु तोरि उधारन, कारन करन आपु मन माने।
असुर सँहारन, भक्‍तनि तारन, पावन-पतित कहावत बाने।
सूरदास प्रभु भाव-भक्ति के, अति हित जसुमति हाथ बिकाने।।380।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः