निरखि स्याम हलधर मुसुकाने।
को बाँधै, को छोरै इनकौं, यह महिमा येई पै जाने।
उतपति-प्रलय करत हैं येई, सेष सहस मुख सुजस बखाने।
जमलार्जुन-तरु तोरि उधारन, कारन करन आपु मन माने।
असुर सँहारन, भक्तनि तारन, पावन-पतित कहावत बाने।
सूरदास प्रभु भाव-भक्ति के, अति हित जसुमति हाथ बिकाने।।380।।