निरखि छवि पुलकत है ब्रजराज।
उत जसुदा इत आपु परस्पर आडि रह कर पाज।।
किंकिनि कटितट मध्य प्रसरि भुज उभय मिलत फनि लाज।
झमित लरत अलिसैन कंज पर मनु मकरँद के काज।।
अर्द्ध गिरा मृदु स्रवत सुधा जनु पिवत स्रुतिनि पुट आज।
'सूरदास' प्रभु सुत रति करिकरि लै लै ऊपर भ्राज।। 12 ।।