निरखि छवि पुलकत है ब्रजराज -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

Prev.png
राग सारंग
घुटुरुवो चलना




निरखि छवि पुलकत है ब्रजराज।
उत जसुदा इत आपु परस्पर आडि रह कर पाज।।
किंकिनि कटितट मध्य प्रसरि भुज उभय मिलत फनि लाज।
झमित लरत अलिसैन कंज पर मनु मकरँद के काज।।
अर्द्ध गिरा मृदु स्रवत सुधा जनु पिवत स्रुतिनि पुट आज।
'सूरदास' प्रभु सुत रति करिकरि लै लै ऊपर भ्राज।। 12 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः