नियत समयपर पहुँच न पायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग जंगला - ताल कहरवा


नियत समयपर पहुँच न पायी मैं संकेत-स्थान।
आये विविध विघ्र-बाधा मिल, लज्जा-भय-‌अज्ञान॥
घन-विद्युत्‌ गर्जन-तर्जन, अति वर्षा झंझावात।
अन्धकारमय पथ, दिन में हो गयी भयानक रात॥
इतने पर भी पहुँच गये प्रिय, क्षणभर हु‌ई न देर।
हो अधीर, कर रहे प्रतीक्षा लगा रहे मन टेर॥
पहुँची अति विलम्ब से, प्यारे लगे पूछने बात।
मृदु कर-कमलों से सहलाने लगे स्वयं मम गात॥
बोले-’क्यों आयी तुम इस दुर्दिन में, कर परिताप।
सुख पहुँचाने मुझको तुम नित ही सहती संताप॥
मैंने कहा-’प्राणधन ! तुम तो सदा यही हो कहते।
पता नहीं तुम मेरे सुख-हित कितने संकट सहते॥
कितना तुम्हें सताती, कितना देती कष्ट अपार।
पर तुम क्षुध न हो कदापि, करते नित नूतन प्यार॥
गिनते मम दूषण को भूषण, तमको विमल विकास।
मेरे अघको पुण्य मानते, कटुता को उपहास॥
सदा देखते रहते, प्यारे ! मेरे मुखकी ओर।
देख जरा-सा मलिन, तुरत हो जाते दुःख-विभोर॥
मुझको सुखी देखने को ही करते सारे काम।
एक इसी चिन्ता में रहते, प्यारे ! आठों याम॥
तरुण तमाल, कनक-लतिका सम, नित्य मिलित तजि निज-पर।
घन-दामिनि सम, मोहन-मोहनि मोहत सतत परसपर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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