नित्य नयी क्षमता है बढ़ती -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


 
नित्य नयी क्षमता है बढ़ती, नित्य नया उल्लास अथाह।
नित्य नयी आकांक्षा अविरल, बढ़ता नित्य नया उत्साह॥
दोनों दोनों के शुचि आत्मा, दोनों दोनों के श्रृंगार।
दोनों दोनों के नित प्रेमी, दोनों दोनों के आधार॥
दोनों दोनों के नित संगी, दोनों दोनों के हिय-हार।
दोनों दोनों से मिल भूले भुक्ति-मुक्ति, अग-जग संसार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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