श्रीनारायणीयम्
द्वात्रिंशत्तमदशकम्
तदनन्तर राजर्षि ने आपकी ही आज्ञा से अपने योगबल से आपको समुद्र में पहुँचाया। आपके पूछने पर राजा ने प्रलयार्णवश के दर्शन की इच्छा की प्रकट की, तब उनसे ‘सात दिन तक प्रतीक्षा करो’- यों कहकर आप अन्तर्धान हो गये।।4।।
आपके द्वारा निर्धारित दिवस के प्राप्त होने पर जब सारा पृथ्वी तल जलधाराओं से परिलुप्त हो गया, तब मुनिश्रेष्ठ सत्यव्रत सप्तर्षियों के साथ उस प्रलय-समुद्र में सम्भ्रान्त होकर आपकी शरण में गये।।5।।
तब आपकी आज्ञा का पालन करने वाली पृथ्वी आपकी ही प्रेरणा से नौका का रूप धारण करके वहाँ आ पहुँची। उस पर वे लोग चढ़ गये। पुनः नौका के डगमगाने से जब वे सभी भयभीत हो गये, तब महान् ऐश्वर्यशाली आप उस जलराशि से प्रकट हुए ।।6।। |
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