श्रीनारायणीयम्
एकोनत्रिंशत्तमदशकम्
उस युद्ध में आपने कालनेमि, माली, सुमाली और माल्यवान् का संहार किया तथा इंद्र ने बलि, जम्भ, बल और पाक को मौत के घाट उतारा। पुनः जिसका वध सूखे एवं गीले पदार्थ से दुष्कर था, उस नमुचि का सिर समुद्र-फेन से उतार लिया। तब नारद जी के कहने से आपने उस युद्ध को बंद कर दिया।।7।।
आपने दैत्यों को मोह में डालने वाला स्त्रीरूप धारण किया था- यह सुनकर उसे देखने की अभिलाषा से शिव जी भूतगणों तथा पार्वती के साथ आपके वासस्थान वैकुण्ठ को गये। वहाँ आपका स्तवन करके उन्होंने अपना मनोरथ कह सुनाया। तब आप अंतर्धान हो गये।।8।। |
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