श्रीनारायणीयम्
अष्टाविंशतितमदशकम्
परंतु जब यह स्पष्ट हो गया कि लक्ष्मी ने आपको ही अपना हृदय समर्पित कर दिया है, तब तुरंत ही देवराज इंद्र ने उन्हें बैठने के लिए मणिपीठिका आगे बढ़ा दी और सबके द्वारा लायी हुई अभिषेक सामग्रियों से ऋषियों ने मन्त्रोच्चारणपूर्वक उनका अभिषेक किया।।4।।
अभिषेक जल के साथ ही साथ पड़ते हुए आपके मनोहर कटाक्षों से जिनकी अंगवल्ली विभूषित हो रही थी, उन महालक्ष्मी को देवताओं ने मणिनिर्मित कुण्डल, पीताम्बर और हार आदि भाषूषणों से अलंकृत किया।।5।।
जो कुचकलशों के भार से मंदगति से चल रही थीं, चलते समय जिनके पैरों से सुंदर पायजेब की झनकार हो रही थी, वे महालक्ष्मी भ्रमरों के गुंजवार से व्याप्त वरणमाला हाथ में लिये लाज भरे लीला विलास के साथ आपके निकट आयीं।।6।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज