श्रीनारायणीयम्
पञ्चविंशतितमदशकम्
फिर भी जब आपका क्रोध कम नहीं हुआ तब ब्रह्मा की आज्ञा से बालक प्रह्लाद ने जाकर निर्भयतापूर्वक आपके चरणों में प्राणिपात किया। जिससे आपका क्रोध शान्त हो गया और आपने करुणा के वशीभूत हो उसके मस्तक पर अपना वरद हस्त रख दिया। तत्पश्चात् प्रह्लाद स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करने लगे। यद्यपि उनके मन में किसी प्रकार की कामना नहीं थी, फिर भी आपने उन्हें लोकानुग्रह रूप वर प्रदान किया।।9।।
इस प्रकार नाट्यरूप में आप रौद्र-रस का अभिनय करने वाले हैं। विभो! श्रीतापनीयोपनिषद् स्पष्ट रूप से आपकी समस्त महिमा का गान करती है। अत्यंत शुद्ध आकृति वाले भगवन्! आपका स्वरूप अनुपम तथा सर्वोत्कृष्ट है, ऐसे आपका-आपकी आज्ञा का कौन लंघन कर सकता है। हे प्रह्लादप्रिय! हे मरुत्पुरपते! मेरी समस्त रोगों से रक्षा कीजिए।।10।। ।।इति नरसिंहावतार वर्णनं पञ्चविंशतितम दशकं समाप्तम् ।। |
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