श्रीनारायणीयम्
तृतीयदशकम्
अयि विष्णो! यदि आपकी कृपा हो गयी तो देहधारियों के लिए क्या अलभ्य रह जाता है? अर्थात् उन्हें सब कुछ सुलभ हो जाता है। ऐसी दशा में मेरे कष्ट समूह की समूलोन्मूलनरूपा अवस्था की क्या बिसात है? इस लोक में आपके कौन-कौन ऐसे भक्त हैं जो निरन्तर शोक से रहित एवं जीवन्मुक्त हो अनासक्त भाव से रहते हुए सुख की उपलब्धि नहीं करते हैं? (अर्थात वे सभी सुख में निमग्न हैं) ।।3।।
ईश! आपके चरण कमलों के स्मरण से जो सारी आधि-व्याधि, पीड़ा के नष्ट हो जाने से रोगरहित हो गये हैं, जिनकी अपनी गति गूढ़ (अव्यक्त) है तथा जो संसार में प्रसिद्ध हैं, ऐसे नारद आदि मुनिश्रेष्ठ सतत प्रकाशमान परम सच्चिदानन्दमय अद्वैत रस के प्रवाह में निमग्न हो जगत में स्वच्छन्दतापूर्वक विचरते रहते हैं। इससे बढ़कर और क्या चाहिए? ।।4।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज