श्रीनारायणीयम्
चतुर्विंशतितमदशकम्
वह त्रिशूलों से बींधा गया, दिग्गजों द्वारा बारंबार कुचला गया, महान् विषधर सर्पों से डँसवाया गया, निराहार रखकर विष पिलाया गया और पर्वत की चोटी से ढकेल दिया गया; परंतु हे सर्वव्यापक परमात्मन्! आश्चर्य है, आपमें मन को लगा देने के कारण प्रह्लाद को किसी प्रकार की भी पीड़ा नहीं हुई।।7।।
तब प्रह्लाद का पिता हिरण्यकशिपु, जो अत्यंत दुष्ट था, सशंक हो उठा। उसने गुरुओं के कहने से पुत्र को पुनः गुरु-गृह में भेजकर वरुणपाश से बाँध वहीं अवरुद्ध कर दिया। वहाँ भी जब गुरु घर पर नहीं रहते थे, तब प्रह्लाद अपने अनुयायी दैत्यपुत्रों को भगवद्भक्ति के तत्त्व तथा ब्रह्मज्ञान का उपदेश देते थे।।8।। |
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