नाथ सकौ तौ मोहिं उधारौ।
पतितनि मैं विख्यात पतित हौं, पावन नाम तुम्हारौ।
बड़े पतित पासंगहु नाहीं, अजामिल कौन बिचारौ।
भाजे नरक नाम सुनि मेरौ, जम दीन्यौ हठि तारौ।
छुद्र पतित तुम तारि रमापति, अब न करौ जिय गारौ।
सूर पतित कौं ठौर नहीं, तौ बहत बिरद कत भारौ?।।131।।