नाथ मैं थारो जी थारो -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

Prev.png
राग खमाच - ताल दीपचंदी


मारवाड़ी बोली

नाथ मैं थारो जी थारो।
चोखो, बुरो, कुटिल अरु कामी, जो कुछ हूँ सो थारो॥
बिगड़्यो हूँ तो थाँरो बिगड़्यो, थे ही मनै सुधारो।
सुधर्‌यो तो प्रभु सुधर्‌यो थाँरो, थाँ सूँ कदे न न्यारो॥
बुरो, बुरो, मैं भोत बुरो हूँ, आखर टाबर थाँरो।
बुरो कुहाकर मैं रह जास्यूँ, नाँव बिगड़सी थाँरो॥
थाँरो हूँ, थाँरो ही बाजूँ, रहस्यूँ थाँरो, थाँरो!!
आँगलियाँ नुँहँ परै न होवै, या तो आप बिचारो॥
मेरी बात जाय तो जा‌ओ, सोच नहीं कछु म्हाँरो।
मेरे बड़ो सोच यों लाग्यो बिरद लाजसी थाँरो॥
जचे जिस तराँ करो नाथ! अब, मारो चाहै त्यारो।
जाँघ उघाड्याँ लाज मरोगा, ऊँडी बात बिचारो॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः