नाथ थाँरै सरण पड़ी दासी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग पीलू - ताल दीपचंदी


मारवाड़ी बोली

नाथ! थाँरै सरण पड़ी दासी।
(मोय) भव-सागरमें त्यार काटद्यो जनम-मरण-फाँसी॥
नाथ मैं भोत कष्ट पा‌ई।
भटक-भटक चौरासी जूणी मिनख-देह पा‌ई।
मिटाद्यो दुःखाँकी रासी॥
नाथ! मैं पाप भोत कीना।
संसारी भोगाँकी आसा दुःख भोत दीना।
कामना है सत्यानासी॥
नाथ! मैं भगति नहीं कीनी।
झूठा भोगाँकी तृसनामें उमर खो दीनी।
दुःख अब मेटो अबिनासी॥
नाथ! अब सब आसा टूटी।
(थाँरै) श्रीचरणाँ की भगति एक है संजीवन-बूटी।
रहूँ नित दरसण की प्यासी॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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