नाथ और कासौ कहौ गरुड़गामी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री



नाथ और कासौ कहौ गरुड़गामी।
दीनबंधे दयासिंधु असरन सरन, सत्य सुखधाम सर्वज्ञ स्वामी।।
इहिं जरासंध मद अंध मम मान मथि, बाँधि बिनु काज दल इहाँ आने।
किए अवरोध अति बोध गहि गिरि गुहा, रहत भृंगि कीट ज्यौ त्रास माने।।
नाहिनैं नाथ जिय सोच धन धरनि कौ, मरन तै अधिक यह दुख सतावै।
भृत्य की रीति हम होत मागध सकल, नाथ जिय दमत उद्वेग पावै।।
मधु कैटभ मथन मुर भौम केसी दलन, कंस कुल काल अरु सालहारी।
जानि जग जूप भय भूप तद्रुपता, बहुरि करिहै कलुष भूमि भारी।।
बदत नृप दूत अनुभूत उर भीरुता, सुनत हरि ‘सूर’ सारथि बुलायौ।
भयौ आरूढ तकि ताहि उतर दियौ, जाइ सुधि देहु हौ यहै आयौ।। 4213।।

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