नाथ अनाथनि की सुधि लीजै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग ईमन


नाथ अनाथनि की सुधि लीजै।
गोपी, ग्वाल, गाइ, गोसुत सब, दीन मलीन दिनहिं दिन छीजै।।
नैननि जलधारा बाढ़ी अति, बूड़त ब्रज किन कर गहि लीजै।
इतनी बिनती सुनहु हमारी, बारक हूँ पतिया लिखि दीजै।।
चरन कमल दरसन नव नवका, करुनासिंधु जगत जस लीजै।
'सूरदास' प्रभु आस मिलन की, एक बार आवन ब्रज कीजै।। 3190।।

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