नाचत नैन नचावत लोभ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


नाचत नैन नचावत लोभ।
यह करनी इन नई चलाई, मेटि सकुच कुल छोभ।।
घूँघट घर त्याग्यौ इन मन क्रम, नाचहिं पर सन मान्यौ।
घर-घर-घैर मृदंग सब्द करि, निलज काछनी वान्यौ।।
इंद्री मन समाज गायन ये, ताल घरे रहै पाछै।
सूर प्रेम भावनि सौ रीझे स्याम चतुर बर आछै।।2385।।

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